Tuesday, May 3, 2011

आस्था

( लघुकथा )

पुरुषोत्तम जी घोर नास्तिक हैं। ईश्वर में उनका कतई विश्वास नहीं है।
एक दिन आवश्यक कार्य से उनके घर पहुँचा तो देखा कि वहाँ सत्यनारायण जी की कथा हो रही है। पुरुषोत्तम जी अपनी पत्नी के साथ बैठे कथा श्रवण कर रहे हैं। कथा के उपरान्त हवन और आरती में भी उनका समर्पण-भाव देखते बनता था।
कथा पूरी होने के बाद मैंने उनसे पूछ लिया-  " पुरुषोत्तम जी आप तो अनीश्वरवादी हैं ?"
"हाँ" उन्होंने उत्तर दिया।
मैंने पूछा -  "अभी थोड़ी देर पहले जो मैंने देखा वह क्या था ? "
पुरुषोत्तम जी ने समझाया -  " मेरी ईश्वर में आस्था नहीं है तो क्या हुआ ?" अपनी पत्नी में तो आस्था है। उससे प्रेम है। क्या हम अपनों की खुशी के लिए यह नहीं कर सकते जो उन्हें अच्छा लगे ? "
 

1 comment:

  1. प्रभावी एवं सशक्त लघु कथा... सरल शब्दों में लेकिन सधे हुये ढंग से कही गयी बात भी गहरा प्रभाव छोड़ सकती है इसका जीवंत उदहारण है यह कथा... विषय नया नहीं है.. भाषा भी साहित्यिक नहीं हैं फ़िर भी इस कथा की लेखन शैली में कुछ तो ऐसा है जो इसे विशिष्ट बनाता है.

    पहली बार आई हूँ इस ब्लॉग पर.. पहली ही रचना पढ़ कर कर मन प्रसन्न हो गया..
    सादर
    मंजु

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